
गिरिपार क्षेत्र में महीना भर रहती है मांघी त्यौहार की धूम
क्षेत्र में चल रहे हैं दावतों और नाच गाने के दौर
खबरनामा : संगड़ाह
सिरमौर जनपद में सदियों पुराने माघी त्यौहार के बाद क्षेत्र में परम्परागत नाटी और गीत संगीत का दौर शुरू हो गया है। यहां लोग एक सप्ताह तक मस्ती में डूबे रहेंगे। हाटी जनजातीय क्षेत्र की 154 पंचायतों में 4 दिवसीय माघी त्यौहार के बाद मंगराद के उपलक्ष्य पर गिरिपार क्षेत्र के नौहराधार, देवामानल मे नाटियों का दौर शुरू हुआ। बताते चलें कि माघी त्योहार पर क्षेत्र के सैकड़ो गांव के अधिकतर घरों में देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बकरों की बलि दी जाती है। इस उपलक्ष में यहां महीना भर उत्सव की धूम रहती है।
पारंपरिक नाच गाना और मस्ती की यह तस्वीर सिरमौर जनपद के ट्रांस गिरी हाटी क्षेत्र की हैं। यहां आजकल कई गांव में मस्ती के नजारे देखने को मिल जाएंगे। क्षेत्र के लोग वाद्य यंत्रों की धुनों और पारंपरिक गीतों पर थिरकते नजर आएंगे। गिरिपार जनजातीय क्षेत्र में यह मस्ती लगभग एक महीना तक चलती है। दरअसल यहां मांघी त्यौहार यानी “भातियोज” के बाद लगभग 1 महीने तक नाच गाना और दावतों के दौर चलते हैं। मांघी त्योहार माघ महीने के अंत और पोश महीने के शुरुआत में शुरू होता है। इस त्यौहार के दौरान क्षेत्र के देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बाली के रूप में बकरों की बाली की प्रथम है। सदियों से चली आ रही इस प्रथा को लेकर मान्यता यह है कि क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं से बचाव और परिवार की सुख समृद्धि के लिए देवी देवताओं को प्रसन्न किया जाता है। इसके लिए क्षेत्र के लगभग 40 हजार परिवार देवताओं को बकरा और खाडू प्रदान करते हैं। देवी देवताओं को प्रसन्न करने के बाद क्षेत्र के लोग खुशी मनाते हैं इस उपलक्ष में क्षेत्र भर में नाच गाना और दावतों के दौर चलते हैं। इस दौरान हर घर में दावत होती है। दावतों में करीबी मित्रों और रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है।
हाटी क्षेत्र के लोगों ने इन परंपराओं को तेजी से बदलाव के इस दौर में भी संजोह कर रखा है। आज भी यह त्यौहार प्राचीन स्वरूप में ही मनाए जाते हैं। गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा दिलाने वाली केंद्रीय हाटी समिति का मानना है कि यह प्राचीन परंपराएं हाटी समुदाय के लोगों की कीमती धरोहर है। समिति के कोषाध्यक्ष अतर सिंह नेगी कहते हैं कि गिरिपार क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति को लोगों ने संजोह कर रखा है। इन्हीं सभी परंपराओं की वजह से उन्हें जनजातीय दर्जा मिलने को भी बल मिला है।